May 16, 2025

1 thought on “Brahmins and their role in Indian society By Justice Katju

  1. जाति व्यवस्था भ्रमित करती हे व विभाजन की जन्मदाता हे । जाति व्यवस्था महाभारत काल के १०००-१५०० वर्षों के बाद उपजी तबतक चार वर्णों की व्यवस्था रही व सब समानता के अधिकारी थे किसी में कोई पक्षपात व भेदभाव नहीं था यह महाभारत ग्रथं का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता हे व आर वर्ण से दूसरे वर्ण में जाना बहुत सरल व सम्भव था । जन्म से सब शूद्र ही होते हैं वर्ण व्यवस्था जन्म से व परिवार के अनुसार नहीं थी । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र उनके व्यवसाय ( कर्म) के अनुसार सदैव रही , महाभारत काल के बाद वेदों का अध्ययन लगभग समाप्त हुआ व सबने अपने अपने मत चलाए अपने स्वार्थ/ लालच में व नये नये नियमों का आगमन हुआ मतों/ सम्प्रदाय/ मठों/ मजहब/ रिलीजियन में । अज्ञानता में वर्ण व्यवस्था को जाति बना दिया गया व परिवार व जन्म से जोड़ दिया गया पुर विदेशी आक्रमणकारियों ने इसका अनुचित लाभ लिया जो अभी भी उच्चतम स्तर पर चल रहा हे व ऐक वर्ण वाले दूसरे को गाली दे रहे हैं व अपमान कर रहे हैं व महापुरुषों का अपमान कर रहे हैं यहीं तक नहीं रुके सत्य सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति का अपमान करने से नहीं चूक रहे यह सब स्वार्थ/ लालच/ पद व धन लोलुपता व विदेशी शत्रुओं का प्रभाव यह सब करवा रहा हे । वैदिक संस्कृति के लोग अज्ञानता में व अपने आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन न करते हुए वामपंथी/ नास्तिक/ दूसरे मत परस्त हो रहे हैं वही अपनी संस्कृति को अपमानित कर रहे हैं परन्तु फिरभी अपने हिन्दू नामों को नहीं त्यागते क्योंकि उसी के कारण तो लाभान्वित हो रहे हैं । यह अनुराग कश्यप- कश्यप तो ब्राह्मण होते हैं ऋषि कश्यप से आते हैं जब इतनी घृणा हे तब नाम त्यागे वरना सबसे पहले अपने मूत्र स् अपने कान्हा व उसी मूत्र को अपने माता पिता पर डाले ।

    वर्ण व्यवस्था का अन्त करके जाति व्यवस्था लाकर अपना स्वयं ने हानिं की हे व बस नयी नयी जातियां बनती जा रही हैं हिन्दुओं में यह सब राजनीतिक दल व विदेशी मज़हबी / रिलीजियन शत्रु कर रहे हैं नये नये टूलकिट इन्ही के ऊपर बन रहे हैं व अपमानजनक वक्तव्य भी इन्हीं जातिवाद पर हो रहे हैं । जातियां आतकिस्लाम ( इस्लाम) मजहब व इसाई मत में भी हे उसके कोई छूने का साहस नहीं करता सब भयभीत होते हैं कारण सब जानते हैं ।

    वर्ण व्यवस्था को जाति से भ्रमित न करें व जाति व्यवस्था को समाप्त करना चाहिये व ऐकता व समानता का व्यवहार व व्यवस्था होनी चाहिये जो कि सत्य सनातन वैदिक धर्म में महाभारत काल तक थी व कभी मतभेद नहीं हुआ । वाल्मीकि रामायण, मनुस्मृति, महाभारत में मिश्रण करके अशुद्ध कर दिया आक्रमणकारीयों ने उसी का अब उदाहरण देते हैं जाति विभाजन व अप्रश्यता – छुआछूत व असमानता का ।

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